Book Title: Shant Sudharas Part 02
Author(s): Ratnasenvijay
Publisher: Swadhyay Sangh

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Page 251
________________ अर्थ-अपने दिल में प्रानन्ददायी समता को स्थिर कर और मायाजाल का त्याग करदे, तू व्यर्थ ही पुद्गल की पराधीनता भोग रहा है, तेरा आयुष्य तो मर्यादित है ।। २२७ ।। विवेचन पुद्गल की पराधीनता छोड़ दो हे पात्मन् ! तू क्रोधादि कषाय भावों का त्याग कर दे और समता से दिल जोड़ दे। समता से प्रात्मा अल्प क्षणों में ही भयंकर कर्मों की भी निर्जरा कर देती है। दृढ़प्रहारी ने चार-चार हत्याएं की थीं, परन्तु संयम अंगीकार करने के बाद उसने इस प्रकार समता का अभ्यास किया कि एक मात्र छह मास की अल्प अवधि में ही उसने सर्व घातिकर्मों की निर्जरा कर दी। समता की अपूर्व साधना से गजसुकुमालमुनि ने अल्प समय में ही सर्व कर्मों को निर्जरा कर मोक्षलक्ष्मी को प्राप्त कर लिया। समत्व की साधना के द्वारा भगवान महावीर ने दृष्टि-विष सर्प को भी प्रतिबोध दिया। समत्व की साधना से स्कन्दकाचार्य के ५०० शिष्यों ने मुक्तिपद प्राप्त कर लिया। समता के लाभों का क्या वर्णन करें? समतावन्त महामुनियों को देवदेवेन्द्र और चक्रवर्ती भी प्रणाम करते हैं। प्रतः हे प्रात्मन् ! तू समता का अभ्यास कर । इसके साथ ही हे आत्मन् ! तू हर प्रकार के माया जाल का त्याग कर दे। माया करने से अशुभ कर्मों का बन्ध होता है। शान्त सुधारस विवेचन-२३७

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