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विवेचन
मूढजन पर भी गुस्सा मत करो - इस दुनिया में ऐसे अनेक जड़-बुद्धि वाले कदाग्रही पुरुष होते हैं, जो मन्दमति वाले होने पर भी अपने आपको महान् बुद्धिमान समझते हैं और मतिकल्पना के अनुसार शास्त्र के विपरीत अर्थ कर बैठते हैं। उनकी बुद्धि शास्त्र-परिमित न होने से वे शास्त्र-पंक्तियों का भी अपनी इच्छानुसार अर्थ कर लेते हैं।
सर्वप्रथम ऐसे व्यक्तियों को समझाने के लिए प्रयत्न करना चाहिये । प्रेम से समझ जायें तो ठीक बात है, अन्यथा उनके साथ वाद भी कर सकते हैं। यह 'वाद' भी प्रात्महित की बुद्धि से ही होना चाहिये, किसी को नीचा दिखाने की कुदृष्टि नहीं होनी चाहिये।
इस प्रकार समझाने पर भी वाद करने पर भी सत्य तत्त्व को बतलाने पर भी वह न समझे तो भी उस पर गुस्सा न कर, उसके प्रति माध्यस्थ्य भाव धारण करना चाहिये । यही सोचना चाहिये कि एक व्यक्ति पवित्र दूध का त्याग करके यदि मूत्र पीने की दुश्चेष्टा करता है, तो उसका और क्या उपाय है ?
सूअर के सामने एक ओर क्षीर और दूसरी ओर विष्टामलमूत्र रखा जाय तो वह विष्टा में ही मुंह डालेगा, उसे क्षीरान्न का भोजन पसन्द नहीं पाता है। मधुर क्षीरान्न का त्याग कर वह विष्टा में अपना मुंह डालता है तो इसमें हमारा क्या दोष
शान्त सुधारस विवेचन-२३४