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तू याद कर, भगवान महावीर और उनके शिष्य जमाली को। उनका कितना घनिष्ठ सम्बन्ध था ? सांसारिक दृष्टि से जमाली प्रभु महावीर के दामाद थे और धार्मिक दृष्टि से भगवान महावीर गुरु थे और जमाली उनके शिष्य ।
"परन्तु कर्म की विचित्रता के कारण जमाली ने भगवान महावीर के एक वचन को स्वीकार नहीं किया। भगवान महावीर के 'कड़ेमाणे कड़े वचन को प्रसिद्ध करने के लिए जमाली अनेक कूतर्क करने लगा। भगवान महावीर तो सर्वज्ञ-सर्वदर्शी थे, उनके वचनों में किसी प्रकार की संदिग्धता नहीं थी, उनके वचन असंदिग्ध थे। परन्तु मोह की विचित्र गति है। भगवान महावीर के शिष्यों ने जमाली को समझाने की बहुत कोशिश की, परन्तु वह नहीं समझा उसने अपना कदाग्रह/हठाग्रह नहीं छोड़ा। हे भव्यात्मन् ! इस घटना पर तू कुछ विचार कर ।
भगवान महावीर सर्वज्ञ थे, अनन्त शक्ति के पुज थे, फिर भी उन्होंने जबरन जमाली को नहीं समझाया, तो फिर यदि कोई आत्मा तेरे हितकारी मार्गदर्शन को स्वीकार नहीं करता है, तो इसमें तुझे रोष करने की क्या पावश्यकता है ? अथवा निराश होने की भी क्या आवश्यकता है। तू उसकी भवितव्यता का विचार कर, उसके प्रति उदासीन बन जा। यही तेरे लिए हितकर मार्ग है। अईन्तोऽपि प्राज्यशक्तिस्पृशः किं ,
धर्मोद्योगं कारयेयुः प्रसह्य । दधुः शुद्धं किन्तु धर्मोपदेशं , यत्कुर्वाणा दुस्तरं निस्तरन्ति ॥ २२० ॥
(शालिनी)
शान्त सुधारस विवेचन-२२३