Book Title: Shant Sudharas Part 02
Author(s): Ratnasenvijay
Publisher: Swadhyay Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 241
________________ हाँ, इस सुख के प्रास्वादन के लिए एक शर्त है -'तुझ औदासीन्य भावना के अमृत का प्रास्वादन करना होगा।' उदासीनता से व्यक्ति मध्यस्थ बनता है-न राग की ओर झुकाव और न ही द्वेष को ओर झुकाव । इस मानन्द का अनुभव सन्त पुरुष करते हैं। एक बार इस प्रानन्द की अनुभूति हो जाने के बाद क्रमशः यह मानन्द दिनदूना रात-चौगुना बढ़ता ही जाता है और अन्त में मात्मा मुक्ति के परम सुख का अनुभव करती है। प्रात्मा शाश्वत सुख की भोक्ता बन जाती है। बस, एक मात्र शुद्ध, बुद्ध और परमानन्द स्वरूप को प्रात्मा प्राप्त कर लेती है। प्रानन्द""आनन्द और आनन्द ही एक मात्र मात्मा का स्वरूप बन जाता है। He that is overcautious will accomplish little. Do you wish people to sp ak well of you, then do not speak at all of yourself. then do not speak at all of yourself. शान्त सुधारस विवेचन-२२७

Loading...

Page Navigation
1 ... 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268