Book Title: Shant Sudharas Part 02
Author(s): Ratnasenvijay
Publisher: Swadhyay Sangh

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Page 209
________________ प्रकल्पयन् नास्तिकतादिवाद मेवं प्रमादं परिशीलयन्तः । मग्ना निगोदादिषु दोषदग्धा , दुरन्त - दुःखानि हहा सहन्ते ॥ २०६ ॥ (उपजाति) अर्थ-नास्तिकता आदि कुवादों की कल्पना करके निविवेक जीव इस प्रकार के प्रमाद का विशेष आचरण करने वाले स्वदोष से दग्ध बने निगोद आदि दुर्गति में गिरकर निरवधि असंख्यकाल तक दुरन्त दुःखों को सहन करते हैं ।। २०६ ।। विवेचन प्रमाद से पतन प्रमाद आत्मा का सबसे भयंकर शत्रु है। आत्मा की विस्मृति सबसे भयंकर प्रमाद है। भौतिकवाद/नास्तिकवाद इस प्रमाद को बढ़ावा देते हैं। नास्तिकवाद से ग्रस्त व्यक्ति प्रात्म-हित को सर्वदा भूल जाता है और 'खाओ, पीरो और मौज करो' Eat, drink and be marry में ही अपने जीवन की सार्थकता समझता है। मात्र इहलौकिक सुखों में प्रासक्त उन मात्मानों की परलोक में कैसी भयंकर दुर्दशा हो जाती है, इसका चित्रण प्रस्तुत करते हुए ग्रन्थकार महर्षि फरमाते हैं कि इस प्रकार भौतिक सुख में आसक्त वे प्रात्माएँ मरकर नरक और निगोद के गर्त में डूब जाती हैं कि बेचारी अनन्तकाल तक पुनः ऊपर भी नहीं उठ पाती हैं। प्रोह ! निगोद के जीवों को जन्म-मरण की कैसी भयंकर शान्त सुधारस विवेचन-१६५

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