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- अनादिकालीन कुसंस्कारों के कारण अपना मन अशुभ भावों/विचारों में शीघ्र प्रवेश कर जाता है, किन्तु उसको शुभ भावों में जोड़ने के लिए अत्यधिक प्रयत्न करना पड़ता है, क्यों? आत्मा पर शुभ विचारों के संस्कार अत्यल्प प्रमाण में हैं। अतः यदि आप भव-बन्धन से मुक्त बनना चाहते हो तो सर्वप्रथम आपको अपने मन पर नियंत्रण लगाना होगा। नियंत्रित मन से ही आप शुभ विचार कर सकते हैं अथवा उसे शुभ विचारों में जोड़ सकते हैं, परन्तु यदि मन स्वच्छन्द और स्वतंत्र है तो उसे शुभ विचारों में केन्द्रित करना कठिन हो जाएगा।
आत्म-विकास के लिए मन का संयमित होना अत्यन्त अनिवार्य है।
परिहरतास्त्रवविकथागारवमदनमनादि - वयस्यम् । क्रियतां सांवर - साप्तपदीनं ,
ध्र वमिदमेव रहस्यं रे ॥ सुजना० २१४ ॥ .. अर्थ-अनादिकाल से सहचारी बने आस्रव, विकथा, गारव तथा मदन का त्याग करो और संवर रूप सच्चे मित्र का आदर करो, यही सच्चा रहस्य है ।। २१४ ।।
विवेचन संवर ही सच्चा मित्र है
करुणासिन्धु पूज्य उपाध्यायजी म. अत्यन्त ही संक्षेप में कल्याण की राह दिखलाते हुए फरमाते हैं कि हे भव्यात्मन् ।
शान्त सुधारस विवेचन-२१०