Book Title: Shant Sudharas Part 02
Author(s): Ratnasenvijay
Publisher: Swadhyay Sangh

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Page 226
________________ इस प्रकार भोजन के गुण-दोष सम्बन्धी वार्तालाप से रागद्वेष भाव बढ़ते हैं और आहार की आसक्ति दृढ़ बनती है। (४) राज-कथा-राज्य, शासक तथा राज्याधिकारी सम्बन्धो वार्तालाप को राज-कथा कहते हैं। वह राजा कितना अच्छा है।' 'उस राजा ने अच्छा युद्ध किया।' 'वह राजा तो कायर है।' इत्यादि वार्तालाप से व्यर्थ ही राग-द्वेष की परिणति बढ़ती है और प्रात्मा कर्म-बन्धन से ग्रस्त बनती है। गारव- (क) ऋद्धि गारव-पूर्व के पुण्योदय से प्राप्त लक्ष्मी, धन, वैभव आदि ऋद्धि का अभिमान करना, धन में प्रासक्त बनना इत्यादि। (ख) रस गारव-खाने-पीने की अनुकूल वस्तुओं पर अभिमान करना, उनमें आसक्त बनना, इत्यादि । (ग) शाता गारव-शरीर की हृष्टपुष्टता, स्वस्थता आदि का अभिमान करना तथा उसमें आसक्त होना। ___ काम-काम यह आत्मा का भयंकर शत्र है, परन्तु हमने उसे मित्र मान लिया है। उसे अपना मित्र मानकर हम उसके अनुरूप प्राचरण कर रहे हैं। काम में आसक्त बनकर/कामान्ध बनकर आज तक अनेक प्रात्मानों ने अपना विनाश ही किया है। हे भव्यात्मन् ! उन काम आदि भयंकर शत्रुनों का तू त्याग कर और संवर के साधनों को अपना मित्र मान । संवर के साधनों का विस्तृत वर्णन 'संवर-भावना' में हो चुका है, अतः उसका पुनः प्रालेखन यहाँ नहीं किया जा रहा है। शान्त सुधारस विवेचन-२१२

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