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तू अनादि के मित्र (?) स्वरूप प्रास्रव, विकथा, गौरव और काम का संग त्याग दे और संवर को अपना मित्र मान ले।
प्रास्रव के ४२ भेदों का विस्तार से वर्णन 'प्रास्रव-भावना' में किया जा चुका है, अतः उसकी पुनरावृत्ति यहाँ नहीं करते हैं।
विकथा अर्थात् ऐसी बातचीत/वार्तालाप जिससे प्रात्मा का अहित हो। विकथा के चार भेद हैं
(१) स्त्री-कथा-जिसमें स्त्री के रूप, वैभव, अंग, उपांग, वस्त्र, अलंकार तथा सौन्दर्य आदि का वर्णन हो, ऐसी स्त्री-कथा करने से काम-वासना प्रज्वलित होती है और स्त्री सम्बन्धी राग बढ़ता है।
(२) देश-कथा-किसी देश या क्षेत्र की समृद्धि, वैभव आदि सम्बन्धी बातचीत करना। अहो ! उस देश में तो कितना घन है ! 'अहो ! उस देश में आधुनिक फैशन के कितने अधिक साधन हैं !' इस प्रकार किसी क्षेत्र के भौतिक विकास सम्बन्धी वार्तालाप करने से उस क्षेत्र का अनुराग बढ़ता है, प्राधुनिक फैशन के साधनों को खरीदने की इच्छा पैदा होती है।
(३) भत्त-कथा-भोजन सम्बन्धी बातचीत को भत्त-कथा कहते हैं। "अहो ! यह रसोइया कितना होशियार है !" 'इसने कितनी सुन्दर रसोई बनाई है ?' 'अहो ! आज का भोजन कितना अच्छा है?'
'वाह । इसे कहते हैं गुलाबजामुन । कितने सुन्दर बने हैं ।
शान्त सुधारस विवेचन-२११