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अर्थ - अंकुशरहित मन मिथ्यात्व मादि विविध प्रकार की उपाधियाँ पैदा करता है और वही निग्रहित मन निःशंक रूप से सुख भी प्रदान करता है ।। २१३ ।।
विवेचन मन का निग्रह करो किसी महर्षि ने ठीक ही कहा है
मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः । मन ही मनुष्यों के बन्धन और मुक्ति का कारण है।
प्रनिग्रहित/अंकुशरहित मन आत्मा की अधोगति कराता है और निग्रहित मन आत्मा को ऊंचा उठाता है। .
प्रात्मा मन की सहायता से ही शुभ-अशुभ अध्यवसाय करती है। यदि मन शुभ विचारों में जुड़ा हुआ होता है तो प्रात्मा के अध्यवसाय भी शुभ होते हैं। शुभ अध्यवसाय से मात्मा शुभ कर्म का बंध करती है और मन के अशुभ-अध्यवसायों से आत्मा प्रशुभ कर्मों का बन्ध करती है। प्रशुभ कर्मों के बन्ध से प्रात्मा नये-नये दुःखों का अनुभव करती है और यदि यह मन शुभध्यान में जुड़ जाय तो वह प्रात्मा पर से कर्मों की महान् निर्जरा भी करा सकता है। शुक्लध्यान के बल से प्रात्मा समस्त घातिकर्मों की निर्जरा कर सकती है।
निग्रहित मन को शुभध्यान में जोड़ा जा सकता है, परन्तु यदि मन को वशीभूत करना नहीं सीखे हैं तो वह सदैव अशुभ विचारों में ही परिभ्रमण करेगा।
सुधारस-१४
शान्त सुधारस विवेचन-२०६