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पञ्चदाभावनाष्टकम्
सुजना ! भजत मुदा भगवन्तं , सुजना! भजत मुदा भगवन्तम् । शरणागतजनमिह निष्कारणकरुणावन्तभवन्तं रे ॥ सुजना० २०९ ॥
अर्थ-हे सज्जनो! शरणागत प्राणियों पर निष्कारण अप्रतिम करुणा करने वाले भगवन्त को आप प्रेम से भजो ।। २०६ ॥
विवेचन भगवन्त की भक्ति करो
जिस व्यक्ति का मन जिनशासन से भावित बना है, उस प्रात्मा में करुणा अवश्य होगो। संसार के सत्रस्त प्राणियों को देखकर ऐसी करुणावन्त आत्मा का हृदय द्रवित हो जाता है । उसके मन में एक ही भावना/कामना रहती है कि संसार के ये सभी प्राणी किस प्रकार दुःख से मुक्त बन जायें और शाश्वत सुख के भोक्ता बन जायें।
द्रव्य और भाव रोगों से अत्यन्त संत्रस्त जीवों को देखकर
शान्त सुधारस विवेचन-२००