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पीड़ा/वेदना है ? अपने एक श्वासोच्छ्वास में उन जीवों के साढ़े सत्रह भव हो जाते हैं। एक अन्तर्मुहूर्त में तो उन जीवों के ६५५३६ भव हो जाते हैं। सतत जन्म-मरण की ही पीड़ा भोग रहे हैं वे। निगोद के जीव जिस भयंकर पीड़ा का अनुभव करते हैं, उस पीड़ा का वर्णन केवलज्ञानी भो अपनी वाणी से नहीं कर सकते हैं।
७वीं नरकभूमि के जीव जिस वेदना का अनुभव करते हैं, उससे भी अनन्त गुणी वेदना निगोद के जीव प्रति पल भोग
उस निगोद की कायस्थिति भी अनन्तकाल की है, एक बार वहाँ चले जाने के बाद वहाँ से ऊपर उठना अत्यन्त ही कठिन हो जाता है।
चौदहपूर्वी भी यदि प्रमाद के वशीभूत हो जाय तो वह भी मरकर निगोद में जा सकता है, तो फिर जो प्रमाद में ही लयलीन बने हुए हैं, उन आत्माओं की भावी दुर्दशा का क्या वर्णन करें ? वे बेचारे दया के पात्र ही हैं।
शृण्वन्ति ये नैव हितोपदेशं ,
___ न धर्मलेशं मनसा स्पृशन्ति । रुजः कथंकारमथापनेयास्तेषामुपायस्त्वयमेक एव ॥२०७ ॥
(उपजाति) अर्थ-जो हितोपदेश को सुनने के लिए तैयार ही नहीं हैं
शान्त सुधारस विवेचन-१९६