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कितने ही प्राणी एक-दूसरे से अधिक पाने के लिए""एकदूसरे से प्रागे बढ़ने के लिए परस्पर स्पर्धा कर रहे हैं। कोई धन से स्पर्धा कर रहा है तो कोई राज्य से..."तो कोई भौतिक सुख के साधनों से।
'मैं उससे आगे बढ़ जाऊँ' 'मैं उससे अधिक सुखी बन जाऊँ', इस प्रकार की भावना से व्यक्ति परस्पर होड़ कर रहे हैं।
कई प्राणी हृदय में क्रोध की आग से जले हुए हैं और वे एक-दूसरे के सुख की ईर्ष्या कर रहे हैं। इस दुनिया में अधिकांश प्राणी ईर्ष्या के रोग से ग्रस्त बने हुए हैं और इस प्रकार अन्दर ही अन्दर जल रहे हैं।
कई मनुष्य धन के लिए परस्पर लड़ रहे हैं, तो कोई सुन्दर स्त्री को पाने के लिए लड़ रहा है तो कोई जमीन व राज्य की सीमा के लिए लड़ रहा है।
भूतकाल के युद्धों के इतिहास पर दृष्टिपात करेंगे तो यही बात ख्याल में प्राएगी कि अधिकांश युद्ध धन, स्त्री और जमीन के लिए हुए हैं। इस प्रकार धन, स्त्री और जमीन के लिए लड़कर व्यक्ति परस्पर खुद का ही विनाश करते हैं ।
इस दुनिया में कई मनुष्य लोभ के वशीभूत होकर नाना प्रकार के कष्ट सहन कर रहे हैं। धन के लिए वे पुत्र-परिवार तक का त्याग कर देते हैं, धन के लिए वे अपने देश का त्याग कर देते हैं और एकान्त-निर्जन प्रदेशों में जाकर कष्टप्रद जीवन व्यतीत कर धनार्जन में लगते हैं।
शान्त सुधारस विवेचन-१९२