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करले, तो वह अन्य सभी दोषों को नष्ट करने में समर्थ बन सकती है।
'क्षमा/तितिक्षा' यह मुक्ति का अनन्य कारण है । यह गुण परमात्मा में असाधारण होता है।
इस गुण को देखकर कर्मसत्ता प्रभु से दूर भाग गई । अर्थात् इस एक गुण के पूर्ण विकास से भी आत्मा परमात्म स्वरूप को प्राप्त कर लेती है।
अदधुः केचन शीलमुदारं, गृहिरणोऽपि हि परिहृतपरदारम् । यश इह सम्प्रत्यपि शुचि तेषां , विलसति फलिताफलसहकारम् ॥ विनय० १९८ ॥
अर्थ-ऐसे अनेक सद्गृहस्थ हैं, जिन्होंने परस्त्री का सर्वथा त्याग कर उदार शीलव्रत धारण किया है, उनका निर्मल यश
आज भी इस जगत् में फले-फूले पाम्रवृक्ष की तरह विलसित हो रहा है ॥ १९८॥
विवेचन शीलव्रतधारियों की अनुमोदना
इस शासन में ऐसे अनेक श्रावक हुए हैं, और हैं जिन्होंने परदारा का त्याग किया है और जो निर्मल शील को धारण किए हुए हैं।
याद करें सुदर्शन सेठ को। जिसने मरणान्त उपसर्ग में भी
शान्त सुधारस विवेचन-१७८