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इस दुनिया में अनेक सात्त्विक पुरुष भी पाए जाते हैं, जिनमें सतोगुण की प्रधानता होती है। कलह-क्लेश के वातावरण से जो सदा दूर रहते हैं और प्रात्म-शान्ति चाहते हैं, ऐसे गुणवान सात्त्विक पुरुषों का भी हम बारम्बार स्मरण करते हैं।
जिनकी बुद्धि हंस के समान है, अर्थात् जिस प्रकार हंस दूध और जल में भेद कर देता है, उसी प्रकार हंस-बुद्धि वाले विवेकोजन भो कर्तव्य-अकर्तव्य, हेय-उपादेय, ग्राह्य-अग्राह्य का विवेक करने में पूर्ण कुशल होते हैं। ऐसे विवेकवन्त सत्पुरुषों का भी नाम स्मरण करने योग्य है।
इति परगुणपरिभावनसारं, सफलय सततं निजमवतारम् । कुरु सुविहितगुरणनिधिगुरणगानं , विरचय शान्तसुधारसपानम् ॥ विनय० २०१॥
अर्थ- इस प्रकार अन्य के सद्गुणों का अनुमोदन करना यही जिसका सार है, ऐसे मानवभव को प्राप्त कर हे आत्मन् ! तू उसे सदा सफल कर। सदाचार में तल्लीन व सद्गुणों के समुद्र समान ऐसे सत्पुरुषों का गुणगान कर और राग-द्वेषादिक विकारवजित निरामय शान्त सुधारस का पान कर ॥ २०१॥
विवेचन जीवन का सार
ग्रन्थकार महर्षि प्रमोद भावना के उपसंहार के रूप में
शान्त सुधारस विवेचन-१८२