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अर्थ-वे स्त्रियाँ भी निर्मल यश सहित अपने उभय कुल को सुशोभित करती हैं, सुचरित्र से सम्पूर्ण चन्द्रकला के समान उनका निर्मल दर्शन भी पूर्वकृत सुकृत के योग से ही होता है ॥ १६६ ।।
विवेचन शीलव्रतधारी महासतियाँ धन्य हैं
उन शीलवती स्त्रियों को भी धन्य है, जो पतिव्रत धर्म का पालन कर अपने पिता और श्वसुर कुल की कीर्ति में चार चांद लगा रही हैं।
स्त्री के लिए शील ही सबसे बड़ा धन है, यदि उसका शील सुरक्षित है तो उसका जीना भी सार्थक है और यदि उसने अपने शील को बेच दिया है, तो उसके देह की कोई कीमत नहीं है, वह हाड़-मांस का ढेर मात्र है।
महासती अंजना, मदनरेखा, कलावती, सीता, मयणासुन्दरी, मलयसुन्दरी आदि के चरित्रों का अध्ययन करने पर हमें ख्याल आता है कि उन्होंने मरणान्त कष्ट में भी अपने शीलधर्म का पालन किया था।
ऐसी शीलवती स्त्रियों के नामस्मरण से पाप का नाश होता है और पुण्य की वृद्धि होती है, इसीलिए प्रातःकाल में 'भरहेसर' की सज्झाय के अन्तर्गत उन महान् सतियों का भी नाम-स्मरण किया जाता है।
महासतियों का दर्शन भी पुण्य का कारण है। पुण्यशाली ही ऐसी सन्नारियों के दर्शन का लाभ उठा सकते हैं।
शान्त सुधारस विवेचन-१८०