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तात्त्विक-सात्त्विक-सुजनवतंसाः , केचन युक्तिविवेचनहंसाः । अलमकृषत किल भुवनाभोगं , स्मरणममीषां कृतशुभयोगम् ॥ विनय० २०० ॥
अर्थ-तथा कई तात्त्विक, सात्त्विक, सज्जन शिरोमणि पुरुष हैं तथा युक्तिपुरःसर विवेचन करने में हंस सदृश लोग हैं, उन दोनों से समस्त जगत् अलंकृत बना है ॥ २० ॥
विवेचन विवेकीजन धन्य हैं
इस जगत् में सर्वज्ञशासन को प्राप्त कर भूतकाल में अनेक तत्त्ववेत्ता महापुरुष हुए हैं। जिनेश्वरदेव के द्वारा प्ररूपित तत्त्वों के अभ्यास से जिन्होंने जगत् की वास्तविकता को पहचाना है। दार्शनिक चर्चाओं आदि के द्वारा जिन्होंने सत्य तत्त्व को पहचानने के लिए प्रयत्न और पुरुषार्थ किया है, ऐसे तात्त्विक/ तत्त्वज्ञानी महापुरुषों का भी हम पवित्र स्मरण करते हैं, क्योंकि तत्त्वों के गहनतम रहस्यों को जानकर वे आत्माभिमुखी बने हैं और आत्मस्वरूप में लीन बनने के लिए ही उनका पुरुषार्थ रहा है। ऐसे तात्त्विक तत्त्ववेत्ता पुरुष भूतकाल में अनेक हो चुके हैं। तार्किक शिरोमणि मल्लवादी आचार्य सिद्धसेन दिवाकरजी, आचार्य हेमचन्द्र सूरिजी म., प्राचार्य श्री हरिभद्रसूरिजी म., पूज्य उपाध्याय श्री यशोविजयजी म. आदि तत्त्ववेत्तानों के पुण्य नाम का हम स्मरण करते हैं।
शान्त सुधारस विवेचन-१८१