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करुणा-भावना
प्रथममशनपानप्राप्तिवाञ्छाविहस्ता
स्तदनु वसनवेश्मालङ्कृतिव्यग्रचित्ताः । परिणयनमपत्यावाप्तिमिष्टेन्द्रियार्थान् - सततमभिलषन्तः स्वस्थतां क्वाश्नुवीरन् । २०२ ॥
(मालिनी) अर्थ-सर्वप्रथम प्राणी खाने-पीने की लालसा से पाकुलव्याकुल बनते हैं, उसके बाद वे वस्त्र, गृह और अलंकार में व्यग्र चित्त वाले बनते हैं, उसके बाद लग्न, पुत्र-पुत्री की प्राप्ति तथा इन्द्रियों के अनुकूल विषयों की सतत अभिलाषा करते रहते हैं, अतः वे बेचारे किस प्रकार स्वस्थता प्राप्त कर सकते हैं ? || २०२॥
विवेचन संसार दुःख से भरा है
संसार और सुख; असम्भव बात है। क्या आग और पानी एक साथ रह सकते हैं ? क्या धूप और छाया एक स्थान
शान्त सुधारस विवेचन-१८४