________________
विवेचन
सज्जनों का स्मरण
हे प्रात्मन् ! तू उन महान् आत्माओं का पुनःपुनः नामस्मरण कर। उनके चरित्रों को याद कर। उनकी बारम्बार स्तवना कर; जो महापुरुष इस संसार से सर्वथा विरक्त बन चुके हैं, जिनके हृदय में संसार के सुखों के प्रति कोई राग नहीं है अर्थात् जिनके मन में कोई विकार नहीं है तथा जो निरन्तर जगत् के जीवों पर उपकार करने में तल्लीन है।
याद करो-बप्पभट्टसूरिजी म. को, जिन्होंने आजीवन छह विगई के त्याग तथा भक्त के घर की गोचरी का त्याग किया था और इसके साथ ही 'आम राजा' आदि को प्रतिबोध दिया था।
धन्य है सिद्धसेन दिवाकर सूरिजी म. को, जिन्होंने विक्रमादित्य को प्रतिबोध दिया था।
धन्य है कलिकालसर्वज्ञ श्रीमद् हेमचन्द्राचार्यजी को, जिन्होंने कुमारपाल जैसे महाराजाओं को प्रतिबोधित कर अठारह देशों में अहिंसा का प्रचार कराया था।
धन्य है उन महान् प्राचार्यों को, जिन्होंने अपने जीवन की बलि देकर भी जिनशासन की सेवा की है।
अहह तितिक्षागुरगमसमानं , पश्यत भगवति मुक्तिनिदानम् । येन रुषा सह लसदभिमानं , झटिति विघटते कर्मवितानम् ॥ विनय० १९७ ॥
शान्त सुधारस विवेचन-१७६