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इस विश्व में सर्वश्रेष्ठ तत्त्व तारक तीर्थकर परमात्मा ही हैं। उनके ध्यान में तन्मय बनने से अपनी आत्मा भी निर्मल स्वरूप को प्राप्त करती है।
एक बार महान् साहित्यकार टॉलस्टॉय किसी गरीब की झोंपड़ी में पहुंचे। उस झोंपड़ी में खड़े एक व्यक्ति से उन्होंने पूछा-'यह किसका घर है ?'
उसने कहा- 'एक धनी का।'
जवाब सुनकर टॉलस्टॉय को बड़ा आश्चर्य हुआ- 'धनी का घर और ऐसा जीर्ण शीर्ण ?' उसने कहा-'यह कैसे ?'
उस व्यक्ति ने कहा-'जिस झोंपड़ी में विश्व के महान् साहित्यकार टॉलस्टॉय खड़े हैं, वह घर गरीब का कैसे हो सकता है ?'
यह जवाब सुनकर टॉलस्टॉय प्रसन्न हो गए और उन्होंने उस गरीब का दारिद्रय दूर कर दिया।
बस, इसी प्रकार जिसके हृदय में परमात्मा का वास है, उसके जीवन में दीनता/हीनता की भावना कैसे प्रा सकती है !
जिसके हृदय में परमात्मा का वास है, वह व्यक्ति तो विश्व में सबसे अधिक धनाढ्य है।
हे पात्मन् ! इस संसार में जितनी भी निर्मल आत्माएं हैं, उन सबके हृदय में परमात्मा का वास हो और वे सब समता रूपी अमृत का पान कर सदा सुख में लीन बनी रहें ।
शान्त सुधारस विवेचन-१४७