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विवेचन
जीभ की सच्ची सफलता
मानव-जीवन में हमें अनेक अमूल्य वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं। हम इच्छानुसार देख सकते हैं"इच्छानुसार बोल सकते हैं और इच्छानुसार सुन सकते हैं।
परन्तु महापुरुषों ने कहा है-अाँख, कान और जीभ इन तीनों इन्द्रियों पर पूर्ण नियंत्रण होना चाहिये, अन्यथा ये इन्द्रियाँ अपनी आत्मा की अधोगति करा सकती हैं।
अपनी इच्छानुसार ही हमे सुनना, बोलना अथवा देखना नहीं है, बल्कि जो श्रवण करने योग्य है, उसी का श्रवण करें। जो देखने योग्य है, उसी का दर्शन करें और जो कहने योग्य है, उसी का कथन करना चाहिये ।
महापुरुषों ने कहा है-इस वाणी (जीभ) की सफलता गुणीजनों के गुणगान करने में ही है। कानों की सफलता गुणीजनों के गुण-श्रवण में ही है और इन आँखों की सफलता महापुरुषों के दर्शन करने में ही है ।
___ जो आँखें प्रभु का दर्शन करके प्रसन्न बनती हैं, जो आँखें अन्य को समृद्धि को देखकर आनन्द पाती हैं, उन आँखों की प्राप्ति होना सार्थक है।
- पूज्य ग्रन्थकार महर्षि अपनी इन इन्द्रियों को समझाते हुए कहते हैं कि हे जीभ ! तू महापुरुषों के सुकृतों के उच्चारण करने में प्रसन्न और उत्साहित हो ।
शान्त सुधारस विवेचन-१६६