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दिखाई नहीं देते हैं। उसे तो दोष-दर्शन में ही रस पाता है । इस प्रकार अन्य के दोषों को देखकर वह अपने चित्त की प्रसन्नता खो देता है। उसे दूसरों की निन्दा में ही रस आता है, जबकि गुणवान व्यक्ति अन्य के गुणों को देख-देखकर हर्ष पाता है, इस हर्ष के फलस्वरूप उसका चित्त प्रसन्न बनता है और वह भी उस गुरण को अल्प समय में प्रात्मसात कर लेता है। प्रमोदभावना से अन्य के गुणों की प्रशंसा करने से यदि वह गुण अपने में हो, तो दृढ़ बनता है और न हो, तो प्राप्त होता है।
Begin, to begin is half the work. Let half still remain, again begin this, and thou will have finished.
Anger is a momentary madness, so control your passion or it will control you.
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शान्त सुधारस विवेचन-१७१