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खुद काना बन गया, परन्तु उसे इस बात का अधिक दुःख नहीं था, किन्तु पड़ोसी अन्धा हो गया, इस बात का उसे अत्यन्त हर्ष था। थोड़ी देर बाद अन्धा रविशंकर ज्योंही अपने घर से बाहर निकला, वह कुए में गिर पड़ा।
रविशंकर का जीवन-दीप बुझ गया, परन्तु इससे हरिशंकर को अत्यन्त ही आनन्द हुआ।
ईर्ष्यालु व्यक्ति अन्य को दुःखी देखकर ही सुख पाता है ।
प्रमोद भावना का मुख्य विषय है—अन्य के गुण को देखकर, अन्य के सुख आदि को देखकर प्रसन्न बनना ।
अन्य के गुण देखकर वही व्यक्ति प्रसन्न बन सकता है, जिसमें गुणानुराग हो, जिसके हृदय में प्रमोद भावना विकसित बनी हो।
गुणानुराग एक ऐसा चुम्बक है, जो दूर रहे गुण को खींचकर निकट ले पाता है।
गुणानुरागी ही गुणवान बन सकता है। गुणवान बनने के लिए गुणानुरागी बनना अनिवार्य है।
आज गुण-प्राप्ति के लिए व्यक्ति प्रयत्न करता है, परन्तु गुणानुरागी बनने के लिए नहीं। इसका यही फल होता है कि या तो व्यक्ति गुण प्राप्त ही नहीं कर पाता है अथवा गुणाभास में गुरण की कल्पना कर बैठता है।
जब तक दोषदृष्टि है, तब तक गुणानुरागी बनना सम्भव
शान्त सुधारस विवेचन-१५१