________________
धन्य है भरत महाराजा और कुमारपाल महाराजा को, जिन्होंने अपूर्व सार्मिक भक्ति की थी।
धन्य है विजय सेठ और सेठानी को, जिन्होंने गृहस्थ जीवन में रहकर आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया था ।
धन्य हो महामंत्री पेथड़शाह को, जिन्होंने ३२ वर्ष की भर यौवनवय में आजीवन ब्रह्मचर्यव्रत स्वीकार किया था।
धन्य है सुदर्शन सेठ को, जो परनारी-सहोदर और व्रतधारी महान् श्रावक थे, जिनके शील के प्रभाव से शूली का भी सिंहासन हो गया था....जिनके शील के प्रभाव से अर्जुनमाली भी स्तंभित हो गया था।
धन्य है जंबुकुमार को, जिन्होंने लग्न के पूर्व ही ब्रह्मचर्य व्रत स्वीकार कर लिया था और लग्न की पहली रात्रि में ही अपनी सभी आठ स्त्रियों को प्रतिबोधित कर प्रातः ५२८ के साथ दीक्षा स्वीकार कर ली थी।
धन्य है धन्ना काकंदी को, जिन्होंने छट्ट के पारणे प्रायम्बिल का उग्र तप किया था। अत्यन्त नीरस और निरीह आहार लेने पर भी वे चढ़ते-परिणामी थे।
धन्य है ढंढरण प्रणगार को, जिन्होंने 'स्व-लब्धि से प्राप्त पाहार' लेने का घोर अभिग्रह किया था। छह मास तक आहार न मिलने पर भी उनके परिणाम की धारा खंडित नहीं हो पाई थी....और अन्त में मोदक का परिष्ठापन करते-करते जिन्होंने कैवल्य लक्ष्मी को प्राप्त कर लिया था।
शान्त सुधारस विवेचन-१६४