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रामचन्द्रजी ने सीता का त्याग कर दिया था, फिर भी सीता के हृदय में रामचन्द्रजी के प्रति दुर्भावना पैदा नहीं हुई। सीता ने अपने संदेश में भी यही कहलाया-'लोकप्रवाह में आकर आपने मेरा त्याग कर दिया, इसमें आपको कोई विशेष हानि नहीं होगी....परन्तु लोकप्रवाह में आकर आप जिनधर्म का त्याग मत करना।'
धन्य है उस मयणासुन्दरी को, जो जिनेश्वर-निर्दिष्ट कर्म-सिद्धान्त पर अटल थी, भयंकर आपत्ति में भी वह जिनधर्म की श्रद्धा से विचलित नहीं हुई।
उन समस्त महान् आत्माओं के समस्त-सुकृतों की हम भावपूर्वक अनुमोदना करते हैं। ऐसी महान् आत्माओं की जो अनुमोदना करते हैं, वे भी धन्याह हैं । मिथ्यादृशामप्युपकारसारं ,
सन्तोष-सत्यादि-गुणप्रसारम् । वदान्यता वैनयिकप्रकारम् , मार्गानुसारीत्यनुमोदयामः ॥१६१ ॥
(उपजातिवृत्ता) अर्थ-मिथ्यादृष्टि के भी परोपकारप्रधान संतोष-सत्य आदि गुणसमूह तथा उदारता-विनयवृत्ति आदि मार्गानुसारी गुणों की हम अनुमोदना करते हैं ।। १६१ ।।
विवेचन मिथ्यादृष्टि के मार्गानुसारी गुणों की अनुमोदना
प्रमोदभावना से भावित आत्मा जहाँ-जहाँ भी गुण देखती
शान्त सुधारस विवेचन-१६६