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"हाँ ! पाप कहाँ जा रहे हैं ?" ग्रामीण ने पूछा। सेठ ने कहा-"मैं अपने श्वसुरगृह जा रहा हूँ।" "तो मुझे आप गुड़ की राब खिलाओगे ?" सेठ ने कहा-"जरूर ।"
"अच्छा ! तो मैं आपके साथ चलता हूँ ?" ग्रामीण ने कहा।
मफतलाल सेठ उस ग्रामीण के मार्गनिर्देशानुसार अपने श्वसुर के गांव पहुंच गए। सेठजी के वहाँ पहुँचने पर उनका भव्य स्वागत किया गया और उनके लिए सुन्दर पकवान युक्त भोजन बनाया गया।
सेठ भोजन करने बैठे। साथ में पाए ग्रामीण के लिए भी भोजन का थाल परोसा गया। थाल में गुलाबजामुन, हलवा, बर्फी आदि विविध मिष्ठान्न थे। उस ग्रामीण ने थाल में गुड़ की राब नहीं देखी तो उसको बड़ा गुस्सा आ गया, उसने कहा-"से""""जी ! गुड़ की राब कहाँ है ?"
उसके इस प्रश्न को सुनकर सेठ ने सोचा-"बेचारे ने कभी गुड़ की राब को छोड़ इन मिष्ठान्नों का स्वाद कहाँ चखा है ?" ज्योंही उस ग्रामीण ने बोलने के लिए अपना मुंह खोला-सेठ ने उसके मुंह में एक गुलाबजामुन डाल दिया।
बस ! अब क्या था ?
गुलाबजामुन का स्वाद वह जान गया था। थोड़ी ही देर में उसने वह थाली साफ कर दी।
शान्त सुधारस विवेचन-१४२