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धीरे-धीरे एक मास व्यतीत हो गया। माली का स्वास्थ्य ठीक हो गया। उसके दिल में बगीचे को देखने की इच्छा प्रगट हुई और वह अपने बेटे को लेकर उद्यान की ओर चल पड़ा।
थोड़ी ही देर में वह उद्यान के निकट पहुँच गया। उसने देखा-'उद्यान के सब पौधे सूख रहे हैं....।' यह देखते ही उसने अपने बेटे को धमकाते हुए कहा-'नालायक ! तूने यह क्या कर दिया? बगीचे को समाप्त कर दिया ? बगीचे का सिंचन क्यों नहीं किया ?'
बेटा घबरा गया। अत्यन्त घबराते हुए उसने कहा'पिताजी! मैंने प्रतिदिन इस उद्यान का सिंचन किया है, परन्तु पता नहीं, ये पौधे क्यों सूख रहे हैं ?' .
माली ने पूछा-'तूने इन पौधों का सिंचन कैसे किया था ? बता तो जरा।'
पिता की प्राज्ञा पाते ही माली के बेटे ने एक बाल्टी में जल लिया और हाथ में एक वस्त्र लेकर वह एक पौधे के निकट जा पहुंचा और अपने वस्त्र से सर्वप्रथम वृक्ष की पत्तियों को साफ करने लगा, पत्तियों पर लगी धल को साफ करने के बाद वस्त्र को जल में भिगोकर पत्तियों का सिंचन करने लगा।
मालो ने यह दृश्य अपनी आंखों से देखा। उसने कहा'बेटा ! तेरा यह सब परिश्रम व्यर्थ गया है ? सिंचन पत्तों का नहीं, बल्कि जड़ का होना चाहिये। यदि जड़ का सिंचन होगा तो वह जल पत्तों तक पहुँच जाएगा और पत्तों का सिंचन तो पत्तों को ही समाप्त कर देगा।'
शान्त सुधारस विवेचन-११०