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ये मैत्री आदि भावनाएँ धर्म कल्पवृक्ष की मूल हैं। मूल के बिना वृक्ष टिक नहीं सकता है, उसी प्रकार मैत्री आदि के बिना धर्म कल्पवृक्ष का अस्तित्व सम्भव नहीं है ।
___ जापान की राजधानी तोकियो में एक माली रहता था। उपने अत्यन्त पुरुषार्थ करके एक बगोचे का सर्जन किया था। एक बार उसके पेट में शूल की भयंकर पीड़ा हो गई। इस हेतु ऑपरेशन कराना अनिवार्य हो गया। प्रॉपरेशन व ऑपरेशन के बाद एक मास तक आराम करना अनिवार्य हो गया। माली के दिल में बगीचे की चिन्ता पैदा हो गई। 'बगीचे का एक मास तक सिंचन नहीं होगा तो मेरा बगीचा सूख जाएगा?' माली के १५ वर्ष का एक बच्चा था, उसने अपने पिता को व्यथित देखकर पूछा-'पिताजी! आप इतने उदासीन क्यों हो ?'
पिता ने अपने दिल की बात कह दी। बेटे ने कहा"पिताजी ! प्राप चिन्ता न करें, बगीचे का सिंचन मैं कर दूंगा।" . माली के बेटे ने बगीचे का कार्यभार संभाल लिया। माली निश्चिन्त हो गया। वह बालक वृक्ष-सिंचन की कला से अनभिज्ञ था, अतः उसने अपनी कल्पनानुसार एक बाल्टी में जल लिया और एक कपड़ा लेकर एक वृक्ष पर चढ़ गया। तत्पश्चात् उसने कपड़े से वृक्ष की पत्तियाँ साफ कों और कपड़े को जल में भिगोकर, पत्तियों पर जल सिंचन करने लगा। दिन भर वह यही मेहनत करता रहा।
दिन पर दिन बीतने लगे और वे पौधे धीरे-धीरे कुम्हलाने लगे। यह देखकर उस बालक को बड़ा आश्चर्य हुआ, 'जल सिंचन करने के बाद भी ये पौधे क्यों सूख रहे हैं ?'
शान्त सुधारस विवेचन-१०६