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द्रव्य दृष्टि से इस संसार में रही सभी आत्माएँ एक समान हैं। प्राचारांग सूत्र में जो 'एगे पाया' सूत्र है, वह द्रव्य दृष्टि से ही विश्व की समस्त आत्माओं की एकता सिद्ध करता है। पर्याय दृष्टि से आत्माएँ भिन्न होने पर भी द्रव्य दृष्टि से सभी आत्माएँ एक अर्थात् एक समान हैं ।
अतः हे प्रात्मन् ! जगत् के जीवों की कर्मकृत अवस्था की ओर ध्यान न देकर, उन समस्त जीवों के मूल स्वरूप का चिन्तन कर; उन सब जीवों के प्रति मैत्री भाव धारण कर ।
प्रात्मत्व जाति एक होने से जैसा तेरा स्वरूप है, वैसा ही उन सब आत्माओं का स्वरूप है। भले ही पर्याय दृष्टि से तू मनुष्य है, धनवान है, बुद्धिमान् है, साहूकार है और वह तिर्यंच है, बीमार है, गरीब है-इत्यादि ।
जैसे किसी नाट्यमण्डली में काम करने वाले दो सगे भाई भी जब नाटक करते हैं, तब एक राजा का पात्र भजता है तो एक सेवक का।
नाटक में राजा और सेवक का पात्र भजने पर भी वास्तव में तो वे सगे भाई ही हैं, उसी प्रकार इस संसार की रंगभूमि पर कर्म सत्ता के अधीन बनी सभी आत्माएँ विविध पात्रों के रूप धारण करती हैं, परन्तु वास्तव में, उनका स्वरूप तो एक समान है।
इस प्रकार का चिन्तन कर जगत् के सर्व जीवों के प्रति तू मैत्री भाव को धारण कर ।
शान्त सुधारस विवेचन-१३२