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प्रमोद भावना-इस दुनिया में कई जीव अपने से अधिक गुणवान हैं। ऐसी गुणवन्त आत्माओं के प्रति हमारे हृदय में प्रमोद/बहुमान का भाव होना चाहिये। गुरगवान प्रात्मानों के प्रति ईर्ष्या का भाव न रखकर सम्मान का भाव रखना चाहिये।
गुणवान प्रात्मानों के गुणों के प्रति पक्ष भाव रखने से उन प्रात्माओं में रहे हुए गुण हमें भी प्राप्त होते हैं।
जिस वृत्ति/प्रवृत्ति के प्रति हमारे हृदय में प्रादर-बहुमान का भाव होता है वह वृत्ति/प्रवृत्ति धीरे-धीरे हमारे जीवन में भी आ जाती है। आज तक मोहाधीनता के कारण हमने संसार के सुख के राग व द्वष को ही अच्छा माना है, अतः वही वृत्ति हमारे जीवन में घर कर गई है, अब उस वृत्ति के बजाय गुणीजनों के गुणों के प्रति बहुमान/आदर भाव को जागृत करना है और इस हेतु प्रमोद भावना से अपनी प्रात्मा को भावित करना चाहिये।
करुणा भावना---इस संसार में अनेक जीवात्माएँ दुःख, दर्द और यातनाओं से पीड़ित हैं, उन दुःखी जीवों के दुःख निवारण के लिए हमारे हृदय में करुणा भावना होनी चाहिये । दुःखी के प्रति करुणा रखने से हमारा हृदय आर्द्र कोमल बनता है। कोमलहृदयी आत्मा ही जीवदया/अहिंसा, क्षमा आदि धर्मों का पालन कर सकती है, जिसका हृदय कठोर व निर्दय है, वह अहिंसादि धर्मों की आराधना नहीं कर सकता है।
अतः हृदय को कोमल बनाये रखने के लिए उसे करुणा भावना से भावित करना चाहिये।
शान्त सुधारस विवेचन-११५