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विवेचन
सभी प्रात्माएँ बोधि प्राप्त करें
हे प्रात्मन् ! तू सर्व जीवों के प्रति मैत्री भाव को धारण कर। वे एकेन्द्रिय आदि प्राणी भी शीघ्र पंचेन्द्रिय अवस्था को प्राप्त करें और बोधि की आराधना कर अपने भव-भ्रमण को सीमित कर दें।
अहो ! इस भीषण संसार में एकेन्द्रिय आदि जीवों की कैसी भयंकर हालत है ?
निगोद के जीव निरन्तर जन्म-मरण की पीड़ा का अनुभव कर रहे हैं। अपने एक श्वासोच्छ्वास में उनके १७ बार जन्ममरण और १८ वीं बार पुनः जन्म हो जाता है।
अनन्तकाल से वे इस पीड़ा को भोग रहे हैं। कब वे इस भयंकर पीड़ा से मुक्त बनेंगे ?
.."और इधर पृथ्वीकाय के जीव सर्दी-गर्मी के कारण पीड़ित हैं...पैरों तले रौंदे जा रहे हैं."अप्काय के जीवों की भी कैसी बुरी हालत है, कई परस्पर टकराकर मर रहे हैं तो कई धूप से मर रहे हैं.."अहो! कई जीव उन्हें ऐसे ही निगल रहे हैं। अग्निकाय के जीवों की भी यही दुर्दशा है - जल के प्रतिकार से वे नष्ट हो रहे हैं।
वायुकाय के जीव भी परस्पर संघर्ष द्वारा नष्ट हो रहे हैं। मनुष्य आदि के श्वासोच्छ्वास द्वारा उनका जीवन समाप्त हो रहा है।
शान्त सुधारस विवेचन-१२४