________________
विवेचन
परमात्मा ही शरण्य है
हे भव्यात्माओ! इस संसार के परिभ्रमण से यदि आप कंटाल गए हों, यदि यह संसार-भ्रमरण आपको खेद रूप लगता हो
और आप इस भवबन्धन से मुक्त होना चाहते हों तो हृदय में विनयगुण धारण कर और शान्त सुधारस का पान कर जिनेश्वरदेव को प्रणाम करो।
आत्मविकास के लिए सर्वप्रथम विनयगुण अनिवार्य है। विनय सर्वगुणों का मूल है।
'प्रशमरति' ग्रन्थ में पूज्य उमास्वाति म. ने कहा है
"तस्मात् कल्यारणानां सर्वेषां भाजनं विनयः।"..."इस कारण समस्त कल्यारणों का भाजन विनय है ।
अन्यत्र भी कहा है-'विनयमूलो धम्मो' धर्म का मूल विनय है। जिस प्रकार जड़ के बिना वृक्ष का अस्तित्व टिक नहीं सकता, उसी प्रकार विनय के बिना धर्म का अस्तित्व रहना असम्भव है।
विनय सर्व गुणों को खींचने का लौह-चुम्बक है। इस गुण को आत्मसात् करने वाली आत्मा अल्प समय में अपना विकास कर लेती है।
पूज्य उपाध्यायजी म. फरमाते हैं कि हृदय में विनय गुण धारण करने के बाद शान्त सुधारस (अमृतरस) का पान करो।
शान्त सुधारस विवेचन-७०