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भगवान महावीर परमात्मा ने कहा है-इस संसार में जीवात्मा को चार वस्तुएँ अत्यन्त ही दुर्लभ हैं-(१) मनुष्यत्व (२) धर्मश्रवण (३) धर्मश्रद्धा और (४) संयम । ____इस विराट् संसार में अनन्तानन्त आत्माएँ हैं। यह सम्पूर्ण विश्व सूक्ष्म निगोद के जीवों से ठसाठस भरा हुआ है। इस चौदह राजलोक में निगोद के असंख्य गोले हैं। एक गोले में असंख्य निगोद हैं और एक निगोद में अनन्त-अनन्त जीव रहे हुए हैं। - चारों गतियों में सबसे कम जीव मनुष्य गति में है। मनुष्यों की संख्या नियत है और उसकी गणना की जा सकती है। मनुष्य से कई गुने नारकी हैं। नारकी असंख्य हैं। नारक से भो देवों की संख्या अधिक है और देवों से भी तिर्यंचों की संख्या अनन्त गुनी है।
असंख्य सम्यग्दृष्टि देव मनुष्य भव पाने के लिए लालायित हैं।
सम्यग्दृष्टि देव और नारकी यदि सम्यक्त्व अवस्था में उनके आयुष्य का बन्ध हो तो मरकर मनुष्य ही बनते हैं।
मनुष्य भव पाने की इच्छा वाले बहुत हैं और उसकी संख्या नियत है।
__ ज्ञानियों ने मनुष्य-जीवन की प्राप्ति को अत्यन्त ही दुर्लभ कहा है। दश-दृष्टान्तों के द्वारा उसकी दुर्लभता का वर्णन किया है। दुनिया की अन्य सब सामग्री मिलना सुलभ है, किन्तु मनुष्यभव की प्राप्ति होना अत्यन्त ही दुर्लभ है ।
शान्त सुधारस विवेचन-७४