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माघवती (सातवीं नरक भूमि) के मार्ग में ले जाने वाला है ।। १६५ ।।
विवेचन अनार्यदेश में मनुष्य-जन्म भी अहितकर बन सकता है ___कदाचित् कुछ पुण्योदय से मनुष्य का जन्म भी मिल जाय, परन्तु आर्य देश न मिले तो ?....पुनः आत्मा अधोगति की ही प्रवृत्ति करती है। आज अनार्यदेश के मनुष्यों की क्या स्थिति है ? हिंसा, झूठ, चोरी, हत्या, व्यभिचार, बलात्कार व अपहरण आदि का वहाँ बोलबाला है।
भौतिक दृष्टि से समृद्ध होने पर भी आध्यात्मिक गुण-समृद्धि की अपेक्षा वे दरिद्र ही हैं।
वहाँ न अहिंसा का प्रेम है और न ही सदाचार का। 'खामो, पीओ और मौज उड़ानो' के सिद्धांतानुसार ही उनका जीवन होता है।
__ वहाँ पर उन्हें आत्मा, पुण्य-पाप व परलोक/मोक्ष की शिक्षा देने वाला कौन है ?
जन्म से ही जहाँ मांसाहार चल रहा है, वहाँ जीवदया के संस्कार कहाँ से मिलेंगे ?
भोग, वैभव और विलासिता में ही यौवन की सफलता मानने वाले ब्रह्मचर्य और शोल के महत्त्व को कैसे समझ सकेंगे?
शान्त सुधारस विवेचन-६२