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एक बार एक चक्रवर्ती एक ब्राह्मण पर प्रसन्न हो गए और ब्राह्मण को अपनी इच्छानुसार वर मांगने के लिए कहा । उस ब्राह्मरण ने कहा- "मुझे प्रतिदिन एक घर पर भोजन और दक्षिणा में एक सोना मोहर मिल जाय तो मुझे प्रसन्नता होगी।"
चक्रवर्ती ने ब्राह्मण की मांग स्वीकार कर ली। उस नगर में लाखों लोगों की बस्ती थी।
पहले दिन उसने चक्रवर्ती के घर भोजन किया और उसे दक्षिणा में एक सोना मोहर मिली। उसके बाद उसने दूसरे घर भोजन किया और उसे एक सोना मोहर मिली। इतने बड़े विशाल नगर में क्या चक्रवर्ती के घर दूसरी बार भोजन की बारी पा सकती है ? नहीं। बस, इसी प्रकार से इस विराट् संसार में एक बार मनुष्य जीवन पाने के बाद पुनः मनुष्यजीवन की प्राप्ति होना अत्यन्त ही दुर्लभ है।
इसके साथ ही इस संसार में मोह और मिथ्यात्व रूपी चोर भी घूम रहे हैं, जो आत्म-धन को लूट लेते हैं । लब्ध इह नरभवोऽनार्यदेशेषु यः ,
स भवति प्रत्युतानर्थकारी । जीवहिंसादिपापात्रवव्यसनिनां ,
__ माघवत्यादिमार्गानुसारी, बुध्य० ॥१६५ ॥
अर्थ-उसके बाद मनुष्य का जन्म भी यदि अनार्य देश में हो जाय तो वह ज्यादा अनर्थकारी बन जाता है, क्योकि वहाँ जीवहिंसा आदि पापों के प्रास्रव में लगे रहने से वह जन्म
शान्त सुधारस विवेचन-६१