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महाराज के सामने ही बैठ जाते थे । परन्तु प्रवचन सुने कौन ? वे तो थोड़ी देर के बाद ही निद्राधीन हो जाते थे ।
एक दिन प्रवचन प्रारम्भ हुआ । सेठजी श्रा गए और थोड़ी देर के बाद उनकी नींद प्रारम्भ हो गई ।
महाराज ने उन्हें जगाने के लिए पूछा - ' मगनभाई ! सोते हो ?'
'नहीं महाराज ! कौन कहता है ?' जवाब दिया ।
सेठ ने
थोड़ी देर बाद पुनः सेठजी को नींद आने लगी । महाराज ने फिर कहा - 'मगनभाई ! सोते हो ?' सेठ ने कहा - 'नहीं महाराज ! कौन कहता है ?'
थोड़ी देर बाद सेठजी वापस सोने लगे, अबकी बार महाराज ने प्रश्न का रूप बदल दिया और जोर से बोले
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'मगनभाई ! जिन्दा हो ?' सेठजी ने वही जवाब दिया- 'नहीं महाराज! कौन कहता है ? '
सेठ का उत्तर सुनकर चारों प्रोर हँसी की लहर फैल गई ।
. धर्मश्रवरण का अवसर मिलने पर भी कई तो नींद में ही अपना समय बिता देते हैं.... तो कई श्रोता कान से श्रवण करते हैं और उनका मन कहीं ओर भ्रमरण कर रहा होता है ।
मोटर डिपो में गाड़ी के आने-जाने के लिए In and Out
शान्त सुधारस विवेचन- ६६