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संसार के समस्त जीवों को एक अपेक्षा से दो भागों में बाँट सकते हैं
(१) अव्यवहारराशि के जीव। (२) व्यवहारराशि के जीव ।
जो जीव अनादिकाल से सूक्ष्म निगोद में ही रहे हुए हैं और एक बार भी बादरनिगोद आदि की अवस्था को प्राप्त नहीं हुए हैं. वे जीव अव्यवहारराशि के कहलाते हैं।
जो जीव सूक्ष्म निगोद से निकल कर बादरनिगोद आदि अवस्था को प्राप्त हो चुके हैं, वे जीव व्यवहारराशि के कहलाते हैं।
अव्यवहारराशि में अनन्तानन्त आत्माएँ रही हुई हैं, जो वहीं जन्म-मरण करती रहती हैं।
जब तक आत्मा की भवितव्यता का परिपाक न हो, तब तक आत्मा अव्यवहारराशि से व्यवहारराशि में नहीं आती है।
... व्यवहारराशि में आने के बाद आत्मा का विकास हो ही, ऐसी अनिवार्यता नहीं है। व्यवहारराशि में आने के बाद भी आत्मा के विकास में अनेक बाधाएँ हैं। वह बादरनिगोद में भी अनन्तकाल तक रह सकती है।
निगोद अवस्था में आत्मविशुद्धि के लिए अवकाश कहाँ है ? वहाँ सकाम-निर्जरा के लिए अवकाश नहीं है, अतः उस आत्मा के विकास की कोई विशेष सम्भावनाएँ नहीं हैं। निगोद के जीवों को मात्र प्रकाम-निर्जरा होती है।
शान्त सुधारस विवेचन-७६