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सम्यग्दर्शन गुण की प्राप्ति होने पर आत्मा में प्रशम, संवेग, निर्वेद, अनुकम्पा और आस्तिक्य प्रादि पाँच गुण प्रकट होते हैं ।
सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के बाद आत्मा का भव-परिभ्रमण मर्यादित हो जाता है वह आत्मा अधिक से अधिक अर्द्ध पुद्गलपरावर्त काल के अन्दर अवश्य मुक्ति प्राप्त करती है।
भवसागर में इस बोधिरत्न की प्राप्ति होना अत्यन्त दुर्लभ है। इस सम्यक्त्व की उपस्थिति में जीवात्मा की दुर्गति रुक जाती है। इसके प्रभाव से जीवात्मा को वैमानिक व अनुत्तर विमान के दिव्य सुखों की प्राप्ति होती है और मनुष्य के रूप में भी उत्तम जाति व उत्तम कुल की ही प्राप्ति होती है।
हे भव्यात्माओ ! ऐसे निर्मल बोधिरत्न की प्राप्ति के लिए पाप प्रयत्न करो।
अनादौ निगोदान्धकूपे स्थिताना - मजन जनुसृत्युदुःखादितानाम् । परीणामशुद्धिः कुतस्तादृशी स्याद् , यया हन्त तस्माद् विनिर्यान्ति जीवाः ॥१५७॥
(भुजंगप्रयातम्) ततो निर्गतानामपि स्थावरत्वात् , त्रसत्वं पुनर्दुलभं देहभाजाम् । त्रसत्वेऽपि पञ्चाक्षपर्याप्तसंज्ञिस्थिरायुष्यवद् दुर्लभं मानुषत्वम् ॥१५॥
(भुजंगप्रयातम्)
शान्त सुधारस विवेचन-७७