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आया हुआ है। इस लान्तक देवलोक में ५०,००० विमान हैं। यहाँ के देवों का जघन्य आयुष्य १० सागरोपम और उत्कृष्ट आयुष्य १४ सागरोपम है। ये देव, देवी के रूप को देखकर तृप्त हो जाते हैं।
नौ लोकान्तिक-पाँचवें ब्रह्मदेवलोक के पास नौ लौकान्तिक देवविमान पाए हुए हैं। तीर्थंकर परमात्मा की दीक्षा के १ वर्ष पूर्व ये देव आकर प्रभु से तीर्थ-प्रवर्तन के लिए प्रार्थना करते हैं, ये देव एकावतारी होते हैं।
७. महाशुक्र-छठे देवलोक पर महाशुक्र नामक सातवाँ वैमानिक देवलोक पाया हुआ है। इस देवलोक में ४०,००० विमान हैं। यहाँ के देवों का जघन्य आयुष्य १४ सागरोपम और उत्कृष्ट आयुष्य १७ सागरोपम है।
८. सहस्रार-महाशुक्र विमान के ऊपर सहस्रार नामक आठवाँ देवलोक पाया हुआ है। इन देवों का जघन्य आयुष्य १७ सागरोपम और उत्कृष्ट प्रायुष्य १८ सागरोपम है। पंचेन्द्रिय तियंच मरकर अधिक से अधिक आठवें देवलोक तक जा सकते हैं।
९-१०. प्रानत-प्रारणत-पाठवें देवलोक के ऊपर पास-पास में आनत और प्राणत देवलोक आए हुए हैं। प्रानत देवों का जघन्य आयुष्य १८ सागरोपम और उत्कृष्ट आयुष्य १६ सागरोपम है तथा प्राणत देवों का जघन्य आयुष्य १६ सागरोपम और उत्कृष्ट आयुष्य २० सागरोपम है। ये देव मन से ही देवी आदि का स्मरण कर तप्त हो जाते है।
११-१२. प्रारण-अच्युत-नौवें-दसवें देवलोक के ऊपर
शान्त सुधारस विवेचन-४८