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पारण और अच्युत देवविमान पाए हुए हैं। इन दोनों में ३००-३०० विमान हैं। प्रारण देवों का जघन्य आयुष्य २० सागरोपम और उत्कृष्ट-आयुष्य २१ सागरोपम है तथा अच्युत देवों का जघन्य आयुष्य २१ सागरोपम व उत्कृष्ट आयुष्य २२ सागरोपम है।
नव अवेयक-बारह वैमानिक देवलोक के ऊपर नव (नौ) ग्रैवेयक के ऊपर-ऊपर विमान पाए हुए हैं। इन देवों का जघन्य प्रायुष्य २२ सागरोपम और उत्कृष्ट प्रायुष्य ३१ सागरोपम है। अभव्य की प्रात्मा निरतिचार चारित्र का पालन कर अधिकतम नौ ग्रेवेयक तक उत्पन्न हो सकती है।
पाँच अनुत्तर--प्रेवेयक विमानों के बाद पाँच अनुत्तर विमान आते हैं। इन पाँचों अनुत्तर के देव अवश्यमेव समकिती होते हैं । इनके विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित तथा सर्वार्थसिद्ध नाम हैं। अनुत्तर देवों का जघन्य आयुष्य ३१ सागरोपम और उत्कृष्ट-पआयुष्य ३३ सागरोपम है। अनुत्तरगामी देवों के नरक और तिर्यंचगति के द्वार बंद हो जाते हैं, ये देव अल्प भवों में ही मोक्ष जाने वाले होते हैं।
५ अनुत्तर से ऊपर १२ योजन जाने पर ४५ लाख योजन विस्तार वाली सिद्धशिला आती है, जो स्फटिक रत्नमय है, जो मध्य में ८ योजन मोटी और किनारे पर बिल्कुल मक्खी की पाँख की भाँति पतली है। यह सिद्ध शिला उलटे छत्राकार की भाँति है।
सिद्धशिला से ऊपर १ योजन जाने पर चौदह राज लोक का अग्र भाग आता है जहाँ अनन्त सिद्ध भगवन्त रहे हुए हैं ।
सुधारस-४
शान्त सुधारस विवेचन-४९