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संन्यासी सेठजी की बात ध्यानपूर्वक सुन रहे थे। सेठजी की बात सुनकर उन्होंने सोचा, सेठजी व्यर्थ ही अपनी तुच्छ सम्पत्ति का अभिमान कर रहे हैं, इन्हें सत्य का बोध अवश्य कराना चाहिये।
संन्यासी ने पास में ही खड़े एक बालक को पूछा-"तू कौनसी कक्षा में पढ़ता है ?" बालक बोला-"मैं मैट्रिक में पढ़ता हूँ।"
संन्यासी-"क्या तुम भूगोल भी पढ़ते हो ?" उसने कहा "हाँ, जी।"
"तो तुम्हारे पास विश्व का नक्शा-एटलस होगा ?" "हाँ ! जी।"
संन्यासी ने उससे विश्व का नक्शा माँगा। उस विद्यार्थी ने विश्व का नक्शा लाकर संन्यासी को दे दिया।
संन्यासी ने सेठ को कहा-"विश्व के इस नक्शे में भारत कहाँ है ?"
सेठ ने एशिया खण्ड में भारत का स्थान बता दिया। पुनः संन्यासी ने पूछा- "इसमें महाराष्ट्र कहाँ है ?"
सेठ ने एक छोटा सा स्थान दिखलाते हुए कहा-"यह महाराष्ट्र होना चाहिये ।"
"....और इसमें बम्बई कहाँ है ?"
सेठ ने एक बिन्दु तुल्य स्थान बताते हुए कहा-"यह बम्बई है।"
शान्त सुधारस विवेचन-३७