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अन्दर का (४५ लाख योजन प्रमारण) क्षेत्र मनुष्यलोक कहलाता है। मनुष्य की उत्पत्ति इन्हीं ढाई द्वीप के अन्तर्गत होती है ।
पुष्कर द्वीप के चारों ओर पुनः समुद्र है। इस प्रकार वलयाकार रूप में एक द्वीप और एक समुद्र आया हुआ है। इस प्रकार तिर्छालोक में कुल असंख्य द्वीप और समुद्र हैं। ये द्वीप और समुद्र अपने पूर्व के द्वीप या समुद्र की अपेक्षा दुगुने-दुगुने व्यास वाले हैं। सबसे अन्त में स्वयम्भूरमण समुद्र आता है, जिसका व्यास अर्द्ध राजलोक प्रमाण है।
जम्बूद्वीप, धातकी खंड और पुष्कराद्ध द्वीप रूप ढाई द्वीप में १५ कर्मभूमियाँ आई हुई हैं, यहाँ से मोक्षमार्ग सम्भव है। इसके साथ ३० प्रकर्मभूमियाँ और ५६ अन्तर्वीप भी हैं, जहाँ युगलिक मनुष्य रहते हैं। ढाई द्वीप में ५ भरत, ५ ऐरवत और ५ महाविदेह क्षेत्र में आए हुए हैं। महा विदेह क्षेत्र में सदैव मोक्षमार्ग चालू है, जबकि भरत और ऐरवत क्षेत्र में १ कालचक्र (२० कोडाकोड़ी सागरोपम) में मात्र दो कोटाकोटी सागरोपम तक हो धर्म रहता है। अर्थात् तीसरे और चौथे आरे में ही धर्म रहता है।
ढाई द्वीप के बाहर मनुष्य का न तो जन्म होता है, न मृत्यु होती है और न ही मोक्ष होता है। वहाँ सूर्य-चन्द्र भी स्थिर हैं।
जम्बू द्वीप के मध्य में मेरुपर्वत पाया हुआ है, जिसके पंडकवन में तीर्थंकर भगवंतों के जन्म का महोत्सव (देवताओं द्वारा) मनाया जाता है। ढाई द्वीप में कुल १३२ सूर्य और १३२ चंद्र हैं।
शान्त सुधारस विवेचन-४५