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रत्नप्रभा है। इसमें रहने वाले नारकों को जघन्य स्थिति १०,००० वर्ष है और उत्कृष्ट स्थिति एक सागरोपम की है।
इस रत्नप्रभा के तीन काण्ड(भाग)हैं। पहला भाग १६००० योजन का है, जिसमें रत्नों की बहुलता है, दूसरा भाग ८४००० योजन का है, जिसमें कीचड़ की बहुलता है और तीसरा भाग ८०,००० योजन का है, जिसमें जल की बहुलता है। इस नरक-भूमि के १३ प्रतर हैं, जिसमें ३० लाख नरकावास हैं।
इस पृथ्वी का नाम घर्मा है।
(२) शर्कराप्रभा–कंकड-पत्थर की बहुलता के कारण इस नरक का नाम शर्कराप्रभा है। इसकी ऊंचाई एक राजलोक प्रमाण है। इस नरक में दूसरी नरक-भूमि के जीव रहते हैं। इस नरक के कूल ११ प्रतर हैं, जिनमें पच्चीस लाख नरकावास हैं। इस पृथ्वी का पिंड १ लाख ३२ हजार योजन है। इस नरक के नारकों का जघन्य आयुष्य एक सागरोपम व उत्कृष्ट आयुष्य ३ सागरोपम है। इस नरक-पृथ्वी का नाम वंशा है ।
(३) वालुकाप्रभा-इस नरक में बालू-रेती की अधिकता होने से इसे वालुकाप्रभा कहते हैं। इस नरक-पृथ्वी का पिंड एक लाख अट्ठाईस हजार योजन का है और कुल ऊँचाई एक राजलोक प्रमाण है। इस नरक-पृथ्वी का नाम 'शैला' है। इसमें कूल ६ प्रतर और १५ लाख नरकावास हैं। इस नरक के नारकों का जघन्य आयुष्य तीन सागरोपम और उत्कृष्ट आयुष्य ७ सागरोपम का है।
(४) पंकप्रभा-कीचड़ की बहुलता होने से इस पृथ्वी
शान्त सुधारस विवेचन-४०