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धन के लोभ में अमरकुमार की माँ ने अमरकुमार को बलि हेतु सौंप दिया था।
राज्य-प्राप्ति के लिए कोणिक ने श्रेणिक को भयंकर कारावास में धकेल दिया था।
पुत्र के मोह में फंसी सहदेवी रानी ने अपने पूर्व पति कीर्तिघरमुनि को तिरस्कारपूर्वक नगर से बाहर निकाल दिया था।
पूर्व भव की माँ इस जन्म में व्याघ्री बनी और उसने सुकौशलमुनि को चीर-फाड़ दिया था। .
धनश्री स्त्री ने दीक्षित बने अपने पति धनमुनि के चारों ओर लकड़ियों का ढेर कर आग लगा दी थी, जब वे कायोत्सर्ग मुद्रा में स्थित थे।
स्वार्थपूर्ण व्यवहार के सैकड़ों दृष्टान्तों से इतिहास भरा पड़ा है। वास्तव में यह संसार एक मायाजाल ही है, जहाँ मोह के अधीन बनी आत्माएँ स्वजन के वेश में आकर एक-दूसरे के साथ भयंकर मायाचार करती हैं।
ऐसी विषम परिस्थिति में एकमात्र धर्म ही आत्मा का सच्चा साथी और बन्धु है। सहायता के लिए वह हर पल तैयार रहता है। शर्त यह है कि हम उसे हृदय से स्वीकार करें। जिसने एक बार धर्म के प्रति आत्मसमर्पण कर दिया, धर्म उसकी सदेव रक्षा करता है।
भयंकर से भयंकर कुख्यात डाकू, लुटेरे, व्यभिचारी,
शान्त सुधारस विवेचन-२८