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'यह तो मेरा उपकारी है, मेरे सिर पर मोक्ष की पगड़ी (पाग) बाँध रहा है।'
शरीर की चमड़ी उतारने वाले के लिए खंधकमुनि ने 'भाई थकी भले रो' (सगे भाई से भी बढ़कर) शब्द का प्रयोग किया था।
सत्य की रक्षा के लिए हरिश्चन्द्र ने राज्य को भी तिलांजलि दे दी थी।
पूणिया श्रावक को अल्प समृद्धि में भी कितना अधिक सन्तोष था !
___धर्मरुचि अरणगार के हृदय में दया के कितने सुमधुर परिणाम थे कि कड़वे तू बड़े के साग की एक-दो बूंदों से कुछ चींटियों को मृत देखकर, उन्होंने अपने पेट में ही वह साग परठ लिया। भयंकर और विषैले साग में अद्भुत समाधि-समता भाव का आचरण कर उन्होंने केवलज्ञान और परिनिर्वाण को भी प्राप्त कर लिया।
जिनशासन के अंगभूत क्षमादि धर्मों में अद्भुत शक्ति है ।
देव, असर व नर से पूजित शासन--परमात्मा का शासन त्रिलोकपूज्य है। वैमानिक आदि के इन्द्र परमात्म-शासन की अद्भुत भक्ति करते हैं। भवनपति-व्यन्तर आदि के असुरेन्द्र भी परमात्म-शासन की अद्भुत सेवा करते हैं और सम्यग्दृष्टि चक्रवर्ती आदि तो परमात्म-शासन के चरणों में छह खण्ड की ऋद्धि-समृद्धि का त्याग कर आत्म-समर्पण भी कर देते हैं ।
शान्त सुधारस विवेचन-२६