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भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष और वैमानिक चारों निकाय के देवता परमात्मा के जन्म आदि कल्यारणकों का भव्य उत्सव करते हैं । सौधर्मेन्द्र आदि पशु (बैल) का रूप धारण कर प्रभु का जन्माभिषेक कर अपने आपको धन्य मानते हैं । परमात्मशासन की सेवा के लिए अत्यन्त समृद्ध राजा-महाराजादि तत्क्षण विशाल राज्य का भी त्याग कर देते हैं ।
परमात्मा का शासन प्रात्मा को भव- परम्परा से मुक्त कराने
वाला है ।
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बन्धुरबन्धुजनस्य
दिवानिश
मसहायस्य सहायः । भ्राम्यति भीमे भवगहनेऽङ्गी,
त्वां बान्धवमपहाय
पालय० ।। १३७ ॥
अर्थ - यह धर्म बन्धुरहित का बन्धु है और असहाय व्यक्ति के लिए सहायभूत है | आप जैसे बन्धु का इस भीषरण संसार में चारों ओर भटकते हैं ।।
त्याग करने वाले
१३७ ।।
विवेचन
संसार में धर्म ही सच्चा सहायक है
इस भयंकर संसार में आत्मा का सच्चा बन्धु एकमात्र धर्म
अवसर आने राज्य के लोभ में
ही है । दुनिया के अन्य संबंध तो स्वार्थजन्य हैं । पर सगी माँ भी पुत्र का घात कर सकती है । पुत्र पिता की भी हत्या कर सकता है ।
शान्त सुधारस विवेचन- २७