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था, किन्तु उनके साथ धर्म होने से समुद्र भी उनको डुबोने में असमर्थ था। समुद्र भी उनके लिए पृथ्वी के समान ही था।
धर्म के प्रभाव से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। - एक धर्म ही मेरी समस्त इच्छाओं को पूर्ण करने में समर्थ है, तो मुझे अन्य के आश्रय से क्या काम है ।
कृष्ण में मस्त बनी मीरा गाती थी न ? 'मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई।'
बस, जिसे धर्म में सर्वस्व की बुद्धि हो गई है, वह अब अन्य के पास कैसे दौड़ सकता हैं ?
इह यच्छसि सुखमुदितदशाङ्ग,
प्रेत्येन्द्रादि - पदानि । क्रमतो ज्ञानादीनि च वितरसि ,
निःश्रेयस - सुखदानि , पालय० ॥ १३६ ॥ अर्थ- (हे जिनधर्म !) इस लोक में प्राप दसों प्रकार से वृद्धिंगत सुख प्रदान करते हो। परलोक में इन्द्र आदि के महान् पद प्रदान करते हो और अनुक्रम से मोक्षसुख प्रदान करने वाले ज्ञानादि भी प्रदान करते हो ॥ १३९ ।।
विवेचन धर्म ही समस्त सुखों का कारण है धर्म जीवात्मा को दुःख में से मुक्त कर शाश्वत सुख की ओर
शान्त सुधारस विवेचन-३१