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छत्तीसवां बोल-२५
प्रमणों के समान सुख और दुःख मे, लाभ और अलाभ में तथा निन्दा और प्रशसा मे समभाव-समानवृत्ति रखने का अभ्यास करना चाहिए । समानवृत्ति कषाय-विजय की चाबी है । सामायिक आदि छह आवश्यक भो कषाय पर विजय प्राप्त करने के लिए ही प्रतिदिन किये जाते हैं । तुम श्रमजोपासक हो अर्थात् समभाव के उपासक हो । अतएव समान भाव का अभ्यास करो और कषाय जीतने का प्रयत्न करो । इसी में तुम्हारा कल्याण है ।
कषाय को जीतने से बीतरागभाव प्रगट होता है । चीतरागमार्ग जिन भगवान का मार्ग है। जैन का अर्थ भी 'विजेता' होता है । रागद्वेष और कषाय पर विजय प्राप्त करने वाला ही सच्चा जैन है और वही वीतराम के मार्ग पर चलने वाला है । जो नाम से जैन है उसे काम से भी बनना चाहिए । जिस मनुष्य के जीवन मे सच्चा जैनत्व प्रकट होता है, वह अपने कष ययुक्त जीवन को निष्कषाय बना लेता है और अन्त मे सिद्ध, बुद्ध तथा मुक्त होता है । कषायो पर विजय प्राप्त करने मे सच्चा जैनत्व छिपा है । यह जैनत्व हो जैन-जीवन है और जैन-जीवन जीने मे ही कल्याण है।