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छत्तीसों बोल-२३
और उनके काका सूरजमलजी दिन भर एक दूसरे के साथ युद्ध करते थे और शाम के समय दोनों एक साथ बैठ कर भोजन करते थे और फिर युद्ध के लगे हुए एक दूसरे के धावों पर पट्टी बांधते थे । परन्तु आजकल तो लोगो के मन इतने अधिक सकुचित्त तथा मलीन हो गये हैं कि साधारणसी बात में भी क्लेश करने लगते हैं ।
कषाय को जीतने का सरल मार्ग यह है कि वैरी को भी अपना हितैषी समझ लिया जाये। शत्रु भी मित्र की भाँति हमारा उपकार करता है, ऐसा समझकर उसके प्रति सद्भाव प्रकट करने चाहिए । पैर में चुभे हुए काटे को. निकालने के लिए सुई चुभोनी पड़ती है या डाक्टर ऑपरे
न करता है तो क्या उन पर नाराजगी प्रकट करनी चाहिए ? नही । लोग यही मानते हैं कि डाक्टर हमारा हित करता है । जिस प्रकार डाक्टर पोडा पहुबाने पर भी हितैषी माना जाता है उसी प्रकार तुम्हारा वैरी भी तुम्हारा हित करता है । ऐसा मानो और उसके प्रति वैरभाव न रखो तो तुम अवश्य ही कषाय को जीत सकोगे। कषाय को जीतने से प्रात्मकल्याण होगा।
कषाय को जीतने से क्या लाभ होता है, इस प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने स्पष्ट ही कहा है-६षाय को जीतने से जीवात्मा वीतरागभाव प्राप्त करता है। अतएव जो जितने अश में कषाय को जीतता है वह उतने ही अश में वीतरागभाव उत्पन्न करता है। हा, यह स्मरण रखना चाहिए कि विवेकपूर्वक कपाय को जीतने से ही फल की प्राप्ति होती है । कषाय जीतने के बहाने जीवन मे कायरता न आ जाए, इस बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए ।