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समय-15 कहत बनारसी गहत पुरुषारथकों, सहज सुभावसों विभाव मीटि गयो है ॥
8 पन्नाके पकाये जैसे कंचन विमल होत, तैसे शुद्ध चेतन प्रकाश रूप भयो है ॥ ३४॥ ६ अर्थ-कैसा है ज्ञानी ? नव तत्त्वकी दृढ प्रतीति होनेसे आत्माके गुण तथा देहके गुण सर्व देख्यो, हूँ है तिस कारणते आपने स्वगुण, जे दर्शन ज्ञान अर चारित्र तीन गुण है तिसमेंही परणमें है पुद्गलादिकके । है गुणमें नहि परणमे है । ऐसा निर्मल भेदज्ञान प्राप्त होय तब स्वस्वरूपमें उत्तम विश्राम ( स्थिरता )
पाय, अपने स्वस्वरूपमेंही आपनो सहायपणा ( साह्यता ) शोधिलेय है स्वस्वभाव शोधिलेय है। , बनारसीदास कहे है जब यो पुरुषार्थ (आत्मस्वरूप अर्थ ) हेतु ग्रहण करे, अर ऐसे सहज स्वाभाविक है * स्वभाव ग्रहण करे तब राग द्वेष अर मोहरूप जे विभाव अनादिकालके है ते सर्व मिटी जाय है जैसे टू पक्के मूसीमें पकानेसे सुवर्ण निर्मल होय है, तैसे ज्ञानीके शुद्ध आत्माका प्रकाश होय है ॥ ३४॥ ॥ अव विभाव छूटनेसे निज स्वभाव प्रगट होय तेऊपर नटी (नाचणारी स्त्री) को दृष्टात कहे है ॥
॥वस्तु स्वरूप कथन ॥ पात्राका दृष्टांत ॥ सवैया ३१ सा॥- . ॐ जैसे कोउ पातर बनाय वस्त्र आभरण, आवत आखारे निसि आडोपट करिके ॥
' दूहूओर दीवटि सवारि पट दूरि कीजे, सकल सभाके लोक देखे दृष्टि धरिके ॥ ६ तैसे ज्ञान सागर मिथ्यात ग्रंथि भेदि करि, उमग्यो प्रगट रह्यो तिहुं लोक भरिके ॥ हूँ ऐसो उपदेश सुनि चाहिये जगत जीव, शुद्धता संभारे जग जालसों निकरिके ॥ ३५॥ है अर्थ-जैसे कोऊ नृत्यकारणी स्त्री 'आपने अंगऊपर वस्त्राभरण पेहरके मनोहररूप बनवाय, आडो * पडदोकरि रात्रीको नृत्यकरनेके आखारेमें आय उभी रहे परंतु सो आडो पडदो है ताते रात्री में दिखाय
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॥२०॥