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कहे हे भैया ये तूं पहयो वस्त्र हमारो है, ऐसे सुनतेही अर चिन्हको पहचानतेहि यह वस्त्र तो दुसरेका है ऐसा जानि तत्काल त्यागभाव उपजे है। तैसेही अनादि कालतै देहका तथा कर्मका
संयोगी जीव है सो, संगके ममत्वसे देहको आपना मानि रह्याहै । अर गुरुमुखते स्वपरका लक्षण समझे। 5/देह अर आत्माका भेदज्ञान होय जब आपकू अर परळू जाने है तब, रागादिक परभावते न्यारा होय | आपना ज्ञाता दृष्टा सुखमय अर अविनासी ऐसे निश्चय स्वरूपको ग्रहण करे है ॥ ३२ ॥
॥ अव निश्चय आत्म स्वरूप कथन ॥ अडिल्ल छंद ।।कहे विचक्षण पुरुष सदा हूं एक हों। अपने रससूं भन्यो आपनी टेक हों। . मोहकर्म मम नांहिनांहि भ्रमकूप है । शुद्ध चेतना सिंधु हमारो रूप है ॥ ३३॥ BI अर्थ-जब ज्ञाता आपणो निश्चय स्वरूप जाणे तब कैसा विचार करे है सो कहे है-विचक्षण जो
भेदज्ञानी है सो मनमें ऐसा विचार करे है मैं सदा एकटा हुं, मेरा कोऊ दूजा साथी नहीहै । अपने ज्ञान तथा दर्शन रस भरपूर गुणसे भन्या है अर आपनेही आधार है, मेरा दूजा कोऊ आधार (आश्रय) नही है । ये जो नाना प्रकारका मोहकर्म है सो मेरा स्वरूप नहीं है, मात्र ये भ्रमजालरूप कूप है। अर जो शुद्ध ज्ञानचेतनाका समुद्र सो हमारा रूप है ॥ ३३ ॥ ॥ अव ऐसा आपना स्वस्वरूप जाननेसे कैसी अवस्था प्राप्त होय है तो कहे है ॥
॥ज्ञान व्यवस्था कथन ॥ सवैया ३१ सा ॥तत्त्वकी प्रतीतिसों लख्यो है निजपरगुण, हग ज्ञान चरण त्रिविधि परिणयो है॥ विसद विवेक आयो आछो विसराम पायो, आपुहीमें आपनोसहारो सोघिलयोहै ।